भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुखड़ा / गंग नहौन / निशाकर

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:34, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=गंग नहौन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



मुँह एकेटा
मुदा देखियौ
कतेक मुखड़ा
लगौने रहैत अछि
मनुक्ख।

आदिकालसँ आइ धरि
बदलि रहल अछि
पल-पल
अपन मुखड़ा।

कखनो हिटलरक
तँ कखनो लादेनक
कखनो रामक
तँ कखनो रावणक
कखनो योगीक
तँ कखनो भोगीक।