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भर दिया जाम / बालस्वरूप राही

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भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इंकार करूँ भी तो कैसे

वैसे तो मैं कब का दुनिया से ऊब चुका
मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका
पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो
मैं सोच रहा हूँ हाय, मरूँ भी तो कैसे।

मंज़िल अनजानी, पथ की भी पहचान नहीं
है थकी-थकी-सी सांस, पांव में जान नहीं
पर जब तक तुम चल रहीं साथ मधुरे, मेरे
मैं हार मान अपनी ठहरूँ भी तो कैसे।

मंझधार बहुत गहरी है, पतवारें टूटी,
यह नाव समझ लो, अब डूबी या तब डूबी
पर यह जो तुमने पाल तान फ़ी आँचल की
अब मैं लहरों से प्राण, डरूं भी तो कैसे

भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इंकार करूँ भी तो कैसे।