सावनी मेघो : एक चेतावनी / बालस्वरूप राही
सावनी मेघों, तनिक इस देश से बचकर गुज़रता
यह डगर तम की डगर है, यह नगर विष का नगर है।
यह ऐसा अमृत पर है न कण-भर प्यार इसका
यह ऐसा कि मरघट तक महज़ विस्तार इसका
उगाते पौध फूलों की यहां पूजते नहीं हैं
मान पाते वे, अंगारों से करें श्रृंगार इसका।
स्नेहमय पावस घनो, कुछ सोच कर मल्हार गाना
गीत पर पड़ती यहां हर व्यक्ति की मैली नज़र है
मृत धरा लेटी हुई है स्वर्ण का शवपट लपेटे
मर्सिया पढ़ते खड़े हैं लौह के निष्प्राण बेटे
व्यर्थ पूंजी मत लुटाओ चेतना की तुम, यहां पर
एक भी ऐसा नहीं जो प्राण में उसको समेटे।
यक्ष के दूतों, यहां मत ज़िन्दगी के गीत गाओ
यह न आंगन प्यार का है, आदमीयत की क़बर है।
उर घिरना ही तुम्हें हो तो घिरो ऐसे घहर कर
बिजलियाँ टूटें, गिरें, इस रात के पिछले पहर पर।
घोट डालो दम अंधेरे का, उजाला जी उठे फिर
तैर जाये नाव किरणों की कुहासे की लहर पर।
तोड़ डालो घेर कुंठा के, विवशता के, घुटन के
सांस जिसमें ले रहे हम, यों लगे रौशन सहर है।
सावनी मेघो, तनिक इस देश से बचकर गुज़रता
यह डगर तम की डगर है, यह नगर विष जा नगर है।