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सिर्फ दोपहर नाम / बालस्वरूप राही

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नये बेकार सभी संयोग
वहीं के वहीं हम लोग

हुआ यदि समय कभी अनुकूल
सभी अनुरोध गये हम भूल
झुकाया माथ बढ़ाया हाथ
अधर तक किन्तु न आई बात।

किसी की सुबह किसी की शाम
सिर्फ दोपहर हमारे नाम
कहां तक धूप ओढ़ कर चलें
कहां तक रेत बदन पर मलें?

मरुस्थल कभी न देगा छाँह
भले ही लाख करें सहयोग

किसी ने हमें बनाया सेतु
किसी ने हमें बनाया केतु
किसी ने छाप सुनहरे शब्द
कहा-लो, बदल गया प्रारब्ध।

शास्त्र ने कभी, शब्द ने कभी
हमारा किया सदा उपयोग

वचन तो कई उन्होंने दिये
न पूरे किये किन्तु किसलिए?
सजाया गया थाल तो नया
न भोजन किन्तु परोसा गया।

न कोई निकल सका निष्कर्ष
बिठाये गये कई आयोग

वहीं के वहीं रहे हम लोग।