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धूम-मेघ / बालस्वरूप राही

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इस तरह तो दर्द घट सकता नहीं
इस तरह तो वक़्त कट सकता नहीं
आस्तीनों से न आंसू पोंछिए
और ही तदबीर कोई सोचिए।

यह अकेलापन, अंधेरा, यह उदासी, यह घुटन
द्वार तो हैं बन्द भीतर किस तरह झांके किरन।

बन्द दरवाज़े ज़रा-से खोलिए
रोशनी के साथ हंसिए-बोलिए
मौन पीले पात-सा झर जायेगा
तो हृदय का घाव खुद भर जायेगा।

एक सीढ़ी है हृदय में भी महज़ घर में नहीं
सर्जना के दूत आते हैं सभी हो कर वहीं।

ये अहम की श्रृंखलाएं तोड़िए
और कुछ नाता गली से जोड़िए
जब सड़क का शोर भीतर आयेगा
तब अकेलापन स्वयं मर जायेगा।

आइए कुछ रोज़ कोलाहल भरा जीवन जियें
अंजुरी भर दूसरों के दर्द का अमृत पिएं

आइए, बातून अफवाहें सुनें
फिर अनागत के नये सपने बुनें
यह सिलेटी कोहरा छंट जायेगा
तो हृदय का दर्द खुद घट जायेगा।