टूट गए सभी वहम / बालस्वरूप राही
टूट गये सभी वहम और ग़लतफहमियां
अच्छा ही हुआ चलो जीवन अब
चैन से गुजारूँगा।
कैमरा रुका मुझ पर लेकिन फिर हट गया
कीर्तिमान लोगों की सूची में
लिखा गया मेरा भी नाम
मगर कट गया।
संधिगान को मैंने अपना स्वर नहीं दिया
मुझको जो काम नहीं रुच पाया नहीं किया
जीवन भर नहीं किया।
टूट गये सभी वहम और ग़लतफहमियां
लेकिन ज़िद बाकी है
जिस दिन यह टूटेगी उस दिन ही हारूँगा।
ग्लैमर का नशा टूटता है जब
बड़ी थकन होती है
आंखों में स्वप्न नहीं, अश्रु नहीं
सिर्फ चुभन होती है।
सुनने के नाम पर सुनना बस अपना स्वर
करने के नाम पर करना बस हस्ताक्षर
मैंने यह जीवन क्रम चुना नहीं
मुझको भी दर्पण ने कई बार बहकाया
पर मैंने सुना नहीं।
जिनको यह धूमधाम भाती है भोगें वे
मैं तो इन भीड़ों से दूर चला जाऊंगा
और फिर अकेले में स्वयं को पुकारूंगा।
अप्रसिद्ध रहने में कितना आराम है
अपनी ही सुब्ह और अपनी ही शाम है
चाहो तो शोर करो, मन हो तो मौन रहो
प्रश्न अगर रुचे नहीं उत्तर में कुछ न कहो।
बहुत मज़ा देते हैं
छोटे सुख, मामूली सुविधाएं
इनके ही लिए सदा बांह मैं पसारूँगा।