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हे राम जी! / संजीव कुमार 'मुकेश'

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हे राम जी!
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ
दीन-दुखी मानव-पीड़ीत के
हौले से सहलइहऽ।

नञ् बुझे अब माय-भाय कोय,
दोस्ती रिस्तेदारी।
प्यार, त्याग, ममता से ऊपर,
पइसा हो गेल भारी।
भाय भरत जइसन तु फिर,
से माय के कोख समइहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ

अप्पन धन के चर्चा नञ्,
दूसर पर ध्यान लगावे।
खोटा सिक्का दे करके,
चाँदी के लगल बनाबे।
अबरी तु सबरी बन जइहा,
जुठ्ठा बैर खिलइहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ

गुरू लगल समेटे में,
चेलबन ओकरो से आगे।
केकरा पर विश्वास करूँ,
कोय पौआ, कोय सावे।
 "माया" नञ् हे रखनी केकरो,
आके तनी बतइहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ

पढ़े-लिखे से बस्ता नञ् हे,
ऊ बन गेल परभारी।
पुण्य के गठरी हल्का हो गेल,
पाप के बोझा भारी।
बाल्मिकी संग चारों आके,
गुरूकुल नया बसइहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ

जेकरा बना के भेजलूँ रक्षक,
सब भक्षक बन जाहे।
एकरा से अच्छा हल रावण,
नञ् सीमा के लाँघे।
हे पुरूषोत्तम हनुमान के,
भक्ति पाठ पढ़इहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ

मेहरारू मानुख नञ् चिन्हे,
बाबा अत्याचारी।
कलयुग में लुग्गा के देखऽ,
किल्लत केतना भारी।
राम राज के खातीर भगवन,
सरयुग तट पर अइहऽ।
हे राम जी! फुरसत मीले त तनी अइहऽ