अइसन गुण के गुणीहें बऊआ / संजीव कुमार 'मुकेश'
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...
बाप-ददा, परिवा, माय के,
चर्चा सगरे गाँव रे...
सबसे पहले शिष्ट बनऽ,
अपनइहँऽ शिष्टाचार।
उत्तम रखिहें खान-पान
तऊ, उत्तम होतऊ विचार।
ऊँचा रखिहें सोच-समझ,
धरती पर रखिहें पांव रे...
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...
जात-पात के भेद नञ् रखिहें
सब जन एक समान।
नञ् मन में हो अहंकार,
हई, सबके दाता राम।
फरेबला ही पेड़ झूके हे,
सबके दीहें छाँव रे...
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...
पढ़ लिख के खुब नाम कमइंहें
नञ् बनीहें मशीन।
पइसा से भी बड़का धन,
गुरु-माय-बाप-बहिन।
भोरे-भोरे उठ के लगीहें,
बड़ लोगन के पांव रे...
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...
नञ् लालच में तुं फसीहें
केतनऊ कोई छोड़ऊ तीर।
देर से मुदा दुरुस्त मीलऽ हे
मत हो जइंहे अधीर।
हंस देख बगुला खुब करतऊ,
कौआ से मीलके कांव रे...
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...
सबसे पहले देश,
बाद के नञ् रखीहें कोय लफड़ा।
आँख नीरोरे अगर माय के,
दीहें झटका तगड़ा।
माये के अँचरा, सरग से सुनर,
ममता सनेह के छाँव रे...
अइसन गुण के गुणीहें बऊआ,
होबऊ बड़ा नाम रे...