ई ससुरी चाय / संजीव कुमार 'मुकेश'
ई ससुरी चाय!
बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय।
की ऑफिस की थाना।
की मरद आऊ जनाना।
चइये से रिस्ता,
अब पडे हे निभाना।
बुढ़ी दादी के बोरसी,
चाहे बाबा के बरसी.
भोरे-भोर बस बेड टी,
आऊ कुछो न´् सोहाय।
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!
अपने ऊ छोड़ देलक,
हमरा पकड़ा के.
पीयऽ हके दही मट्ठा,
हमरा टरका के.
लेके घुम रहलूँ हे,
ढ़ेरो रोग बलाय।
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!
की मॉल की दुकान,
की झोपड़ी की मकान।
रोड़ के हर चौथा घर हे,
अब चाय के दोकान।
ग्रीन टी, मसालेदार टी के नाम पर,
खुब हो रहलो कमाय!
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!
पहले कुटुंम हीं जाके,
आबऽ हलूँभर ढ़ीढ़ा खाके.
अखनें केकरो घर रुकबा,
तऽ लगतो बगला झांके.
अब तो ससुरारो में मिले लगलो,
चाय, दालमोट, मीठाय!
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!
बेटी के बरतुहारी,
चाहे मुखिया जी के दुआरी।
की नुक्कड, ़ की चौराहा,
की महल आऊ अटारी।
केजऊ पनटीटोर चाय,
केजऊ डालल हे मलाय।
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!
बड़का लोग अब,
पीय लगला कॉफी।
कॉफी के फ्लेबर में,
मीलऽ लगलो टॉफी।
हमरा ले तो मठ्ठे ठीक हे,
ई हमरा तनीको न´् सोहाय?
ई ससुरी चाय! बड़ी बलाय!
जे घर जाहूँ, ओजय मील जाय।
ई ससुरी चाय!