भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरमियाँ के फ़ासिले सब मिट गए / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:08, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरमियाँ के फ़ासले सब मिट गए
गुफ़्तगू से मसअले सब मिट गए

साथ जब ले कर चला माँ की दुआ
मुश्किलों के ज़लज़ले सब मिट गए

आ गयी है उम्र ऐसे मोड़ पर
झूठे सच्चे चोंचले सब मिट गए

फ़ेसबुक पर दब गया ऐसा बटन
यार जो थे दोगले सब मिट गए

इक मुक़द्दर का लिखा न मिट सका
और बाक़ी फ़ैसले सब मिट गए