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कोई पंछी चहचहाया क्यूँ नहीं / अनु जसरोटिया

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कोई पंछी चहचहाया क्यूँ नहीं
वन में कोई गीत गूँजा क्यूँ नहीं

कर के वादा फिर निभाया क्यूँ नहीं
अब्र छाया था तो बरसा क्यूँ नहीं

कोई बिजली क्यों नहीं अब कौंधती
कोई जुगनू अब चमकता क्यूँ नहीं

कौन सी सोचों में थे खोए हुए
आज तुम ने हम को सोचा क्यूँ नहीं

बेनियाज़ाना गुज़र जाता है अब
देख कर हम को वो रुकता क्यूँ नहीं

बोझ बस्ते का है बच्चे से सवा
और कहते हैं ये हँसता क्यूँ नहीं

जो नज़र आता है ख़ाबों में मुझे
मेरी क़िस्मत में वो लिक्खा क्यूँ नहीं

अब कहाँ रिश्तों का बाक़ी एतबार
अब कोई करता भरोसा क्यूँ नहीं

पेड़ पौधों से है जीवन में बहार
पेड़ पौधे तू लगाता क्यूँ नहीं