भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग करते हैं दुरंगा आजकल व्यवहार / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 1 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग कहते हैं दुरंगा आजकल व्यवहार ।
 नीतियाँ आदर्श सारे हो गये बेकार।।

मर गई इंसानियत है आदमी के बीच
बन गई हमदर्दियाँ भी आज हैं व्यापार।।

शक्तिरूपी नारियाँ हैं हो गयीं कमजोर
जन समझते बेटियों को है तभी तो भार।।

 झोलियाँ भरने लगे हैं लोग अपनी आज
 बढ़ रहे हैं हर तरफ अब पाप अत्याचार।।

एक दिन फिर से खिलेंगे उस चमन में फूल
है जहाँ पर राज करता आज यह पतझार।।

झूठ बनता जा रहा है आज जीवन सत्य
तैरना जाना नहीं ले चल पड़े पतवार।।

सच सुने अब कौन हैं यह कंटकों का ताज
झूठ का चलने लगा है खूब कारोबार।।