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जिन्दगी भर पीर को हमने पिया / रंजना वर्मा

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जिंदगी भर पीर को हम ने पिया ।
यों जले जैसे कि मंदिर का दिया।।

दर्द से हरदम रहा दिल चूर पर
है नहीं एहसान गैरों से लिया।।

लोग तो बस जख़्म ही देते रहे
घाव इस दिल का स्वयं हमने सिया।।

विघ्न-बाधाओं से हम डरते नहीं
पार है हम ने हिमालय को किया।।

हम अँधेरों से न घबराये कभी
दीप सा जल रोशनी हमने किया।।

खौफ़ कोई क्या हमें दिखलायेगा
कृष्ण बनकर अग्नि को हमने पिया।।

सृष्टि हो पीड़ित ना विष की ज्वाल से
शंभु बन विष पान हम ने ही किया।।