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उदासी के मंज़र मकानों में हैं / देवमणि पांडेय

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उदासी के मंज़र मकानों में हैं

के रंगीनियाँ अब दुकानों में हैं।


मोहब्बत को मौसम ने आवाज़ दी

दिलों की पतंगें उड़ानों में हैं।


इन्हें अपने अंजाम का डर नहीं

कई चाहतें इम्तहानों में हैं।


न जाने किसे और छलनी करेंगें

कई तीर उनकी कमानों में हैं।


दिलों की जुदाई के नग़मे सभी

अधूरी पड़ी दास्तानों में हैं।


वहाँ जब गई रोशनी डर गई

वो वीरानियाँ आशियानों में हैं।


ज़ुबाँ वाले कुछ भी समझते नहीं

वो दुख दर्द जो बेज़ुबानों में हैं।


परिंदों की परवाज़ कायम रहे

कई ख़्वाब शामिल उड़ानों में हैं।