जब चतुर्दिक घोर तम घिरने लगेगा ।
एक दीपक आस का नन्हा जलेगा।।
कंटकों से रक्त रंजित हो चरण जब
तब समीरण स्नेह का मरहम बनेगा।।
अब हमें डर है नहीं परिवर्तनों का
यूँ तो मौसम करवटें लेता रहेगा।।
दूर तक फैली रहे मरुभूमि तो क्या
पाँव साहस से उठा क्योंकर रुकेगा।।
सार्वभौमिक दर्द की अनुभूतियाँ हैं
पर सदय मानव इन्हें हर पल सहेगा।।
सत्य का यदि साथ ही हम दे न पाये
झूठ का संसार ऐसे ही चलेगा।।
पंच तत्वों से बनी यह देह भौतिक
जीव यह समझे अमर बनकर रहेगा।।