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याद नहीं / मनमोहन
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स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ
ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी
याद नहीं निमिष भर की रात थी
या कोई पूरा युग था
स्मृति थी
या स्पर्श में खोया हाथ था
किसी गुनगुने हाथ में
एक तकलीफ़ थी
जिसके भीतर चलता चला गया
जैसे किसी सुरंग में
अजीब ज़िद्दी धुन थी
कि हारता चला गया
दिन को खूँटी पर टाँग दिया था
और उसके बाद क़तई भूल गया था
सिर्फ़ बोलता रहा
या सिर्फ़ सुनता रहा
ठीक-ठीक याद नहीं