हर स्त्री स्त्री नहीं होती / सुशील मानव
खूब ठठाकर हँसे, आधा दर्जन लोग
कि उनकी नर्रा-फाड़ हँसी
टीवी-वाले कमरे से निकल
घुसी जा रही बरज़ोरी से जनानाखाने में
माँ ने कनखियों से झांका
ब्लैक-एंड-व्हाइट डब्बे में दिख रहीं महिला राष्ट्रपति
किसी पुरुष की छाती पर राष्ट्रपति मेडल टाँकती हुई
बिल्कुल वैसी जैसी कभी कभी दिखती है माँ खुद
पिता की छाती में बटन टाँकते हुए
पृष्ठभूमि में गूँज रहा महिला उद्घोषिका का बुलंद स्वर
अदम्य साहस, पूरी निष्ठा,लगन व ईमानदारी से राष्ट्र की सेवा के लिए
अंकित गर्ग को राष्ट्रपति पदक से सम्मानित करते हुए
ये राष्ट्र, स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है
उफ्फ़! कितनी जोर से अपनी गदोरियाँ पीटी थी, ठकुराने के नागेंदर चाचा ने
और फिर पिता की ओर देखकर कहा था
इसे कहते हैं मर्दानग़ी
अफसर हो, तो ऐसा हो
पठ्ठे ने अकेलेदम छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के पाँव उखाड़ दिए
और फिर एक गिलास पानी के बहाने मुझे कमरे से बाहर भगा
पिता के मुँह में मुँह डाले खूब चहचहाकर फुसफुसाए थे नागेंदर चाचा
पट्ठे ने महिला नक्सलियों के तो
अगवाड़े तिन-फुटा बेंत और पिछवाड़े बोल्डर भर दिए थे
अरे! फाड़कर रख दिया था उनका अगवाड़ा और पिछवाड़ा, सब
कान पारे खड़ी माँ, पीछे से सब सुन रही
पिता ने आवाज दी,बेटे
चाय बन गई हो तो, ले आओ
और हाँ, माँ से बोलो खाना आज यहीं खाएंगे सब लोग
माँ ने बलकती चाय उठाई और नाबदान में उड़ेल दी
छोटी पूँछ और कैप्सूल जैसे आकार वाले सफेद, लिजलिजे नाबदान के कीड़े
झुलसकर झन्न हो गए
माँ ने कहलवा भेजा, दूध में बिस्तुइया गिर गई है, पियो तो बना दें
चूल्हा पानी पीकर ठंडा पड़ गया
दोनों एक साथ नहीं जल सकते
आज से पहले कभी,
नहीं देखा माँ को, अपना दुःख भी अपनी तरह महसूसते
पर, आज!
आज तो माँ स्त्रीत्व का शोक मना रही हों जैसे
आज 26 जनवरी को भगवान भी ललाते रहे
माँ ने नहीं लगाया भोग
हाँ, मंदिर के भीतर शिवलिंग के ठीक ऊपर टँगी जलहरी को भले नोच फेंका
सीढ़ियों से लुढ़कती, खनकती, खटखटाती जलहरी भुंई जा गिरी
आवाज सुन पिता समेत सभी टीवी छोड़ बाहर आ खड़े हुए
सन्न और बदहवास
क्या हुआ? क्या हुआ?
माँ चिल्लाई, देखते नहीं
किसने लाकर टाँग दी है सोनी सोरी की योनि
मंदिर में?
कब से शिवलिंग पर टपक रहा है उसकी योनि का ख़ून!
देखो तो पूरा मंदिर खून से लाल-लाल हो गया !
अचानक ये माँ को क्या हो गया
सबके होश-ओ-हवाश ग़ुम
रात को पढ़ाने बैठी माँ ने
किताब में लिखे उस कथन के सामने क्रास का निशान लगवाया
जिसमें लिखा था
प्रतिभा पाटिल देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं
हर स्त्री, स्त्री नहीं होती, माँ ने कहा
पुरुष स्त्री की देह में भी होते हैं
हम बच्चों की जिद पर कारखाने से मिले जिस झंडे को
घर के खपरैले पर पिता ने मूँछों को ऐंठकर फहराया था
उसका डंडा चूल्हे में जलाकर
माँ ने गरमाया हम बच्चों के लिए रात का दूध
अगली सुबह दरवाजे के कुंडे में पेटीकोट के नाड़े से झूलता
माहवारी के कत्थई ख़ून में लथपथ
तिरंगा, शोकग्रस्त था !!!