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जो है होने वाला / सुधांशु उपाध्याय
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आधी दुनिया
काजल पीती
आधी पिए उजाला
उस मंजर को
देख रहा हूँ जो है होने वाला
खिड़की तोड़
नया अब सूरज
भीतर आएगा
बादल बंजर धरती पर आ
नदी बिछाएगा
रामरती ने घर के बाहर
बायाँ पाँव निकाला
उँगली होंठों पर
रखने से बातें नहीं रुकेंगी
लोहे की छत होगी परबरसातें नहीं रुकेंगी
पाजेबों के दिन पूरे होते
अब बोलेगा छाला
आवाज़ों के
भीतर से
अब चुप्पी बोलेगी
हवा उसे छूकर के
बासन्ती हो लेगी
दरवाज़े से आँख
चुराकर भाग रहा है ताला
बहता हुआ
पसीना
यह पहचान बनाएगा
आँखों में
नमकीन नदी का पानी आएगा
रामरती की लड़की ने है
सूरज नया उछाला