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ज़िन्दगी को है जाना उधर जाएगी / सुधांशु उपाध्याय

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ज़िन्दगी को है जाना उधर जाएगी ।
इस तरह ख़ुद ब ख़ुु़द वह सँवर जाएगी ।

आपसे मैं मिला ज़िन्दगी अब मेरी,
थोड़ी सम्हलेगी, थोड़ी बिखर जाएगी।

दिल की धड़कन की दिल से नहीं निभ रही,
दिल से निकलेगी जाने किधर जाएगी ।

एक कश्ती के पीछे है दरिया पड़ा,
ये जहाँ जाएगी अब भँवर जाएगी ।

चाँदनी मल के चेहरे पे चलते हैं वो,
चाँदनी चार दिन में उतर जाएगी ।

रेलगाड़ी कहीं से कोई भी चले,
आप रहते जहाँ उस शहर जाएगी ।

ज़िन्दगी ऐसी धातु से है ये बनी
चोट खाकर ये ज़्यादा निखर जाएगी ।।