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चुम्बन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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मेरे होंठ
उतर आते हैं
पराये होंठों पर
और एक लमहे के अन्दर
मैं भूल चुका होता हूँ
मेरे साथ कौन है
सिर्फ़ उसके होंठ रह जाते हैं
 
मेरे अपने होंठ भी
अपने नहीं रह जाते
मुझसे आज़ाद होकर
उन पराये होठों के साथ
शुरू कर देते हैं
एक ख़तरनाक़ खेल
जो मेरे काबू में नहीं है

जल्द ही
इसका नतीजा भुगतना है