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मल्लाहों का गीत / गोरख पाण्डेय

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हमको कोई तो बताए हो सजनी
नदिया क्यों बहती जाए हो सजनी

धार थमी क्यों लगती है गहरे
उठती हैं क्यों लहरों पे लहरें
कब उतारे कब बढ़ि आए हो सजनी

रात में बाँके नयन-सी चमके
तारों की पायल भँवरों में झमके
छप-छप चाँदनी नहाए हो सजनी

नीले दरपन में सोना घोले
उस पार किरणों ने पाल खोले
सपना पंख लगाए हो सजनी

काठ की नैया घाट है कच्चा
भूख खेवैया पतवार सच्चा
मालिक चुंगी उड़ाए हो सजनी

क्या है मरम इस भीगे पल का
कितना प्यासा है मनवा जल का
काहे मीन अकुलाए हो सजनी

1984