भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम गए चित्तचोर ! / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 5 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम गए चित्तचोर !
स्वप्न-सज्जित प्यार मेरा,
कल्पना का तार मेरा,
एक क्षण में मधुर निष्ठुर तुम गए झकझोर !
तुम गए चित्तचोर !
हाय ! जाना ही तुम्हें था,
यों रुलाना ही मुझे था
तुम गए प्रिय, पर गए क्यों नहीं ह्रदय मरोड़ !
तुम गए चित्तचोर !
लुट गया सर्वस्व मेरा,
नयन में इतना अँधेरा,
घोर निशि में भी चमकती है नयन की कोर !
तुम गए चित्तचोर !