भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अमरूद सुर्खा / चन्दन सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 6 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्दन सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक

एक ऐसे समय
जब बच्चे भी
अपनी कॉपियों के पन्नों पर रबड़ घिसकर
मिटाने लगे हैं उसे
मैं भी अपनी जीभ के पन्ने से
मिटाता हूँ इलाहाबाद

इन दिनों
अगर कहीं पढ़ता हूँ इलाहाबाद
तो आँखे बंद करता हूँ सायास
इस उम्मीद में कि शायद
मेरी पलकों-बरौनियों से पुँछकर
मिट जाएगा वह जो लिखा हुआ है

अब यह मेरे कानों में आता है
ग़लत पते पर पहुँची
किसी चिट्ठी की तरह
मैं इसे भूल रहा हूँ
जैसे यह कभी याद नहीं था मुझे

पर तभी अचानक
मेरी इन कोशिशों में
गड़ने लगता है
दाँतों में फँसा
अमरूद का एक अदद बीज

अमरूद जो दरअसल
ख़ुशबू पर
स्वाद की सुर्ख़ लिपि में लिखा
इलाहाबाद है
एक गूँजता हुआ उच्चारण
उस इलाके की धूप-मिट्टी-बारिश-लोग-बाग का अमरूद सुर्खा
हाथ में लेते ही
उंगलियों में लग जाता है
इलाहाबाद

शायद ये अमरूद
बचा लेंगें इलाहाबाद
जैसे कुछ नदियों ने मिलकर
बचा लिया था
तीर्थराज प्रयाग।