भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ इस तरह / संदीप द्विवेदी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 8 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संदीप द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पल जब इंतजार का हो
कुछ इस तरह इंतजार करना
जैसे जहाँ में तेरे लिए
बस मैं ही हूँ...बस मैं ही हूँ
दुनिया की भागादौड़ी में
उलझा जो तुमको दिखूं मैं
कुछ ऐसे मुझे समेट लेना
जैसे तेरे एकांत में
बस मैं ही हूँ...बस मैं ही हूँ..
ग़र मैं कभी गिर पडूं
वक्त के दिए हालात से
ऐसे मुझे समेट लेना
जैसे कि तेरा हौसला
बस मैं ही हूँ....बस मैं ही हूँ
ग़र भीग न पाऊं तेरे संग
वक्त के दिए हालात से
ऐसे मेरा एहसास करना
तुम पर टपकती बूँद में
बस मैं ही हूँ...बस मैं ही हूँ
दुनिया के हजारो रंगों में
ग़र मैं कभी फ़ीका लगूं
ये सोच अकेला ना छोड़ना
जैसे तुम्हारी रंगीनियत
बस मैं ही हूँ....बस मैं ही हूँ..