भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम के पहले बहुत पहले हुआ सूरज हलाल / विनय कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 29 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम के पहले बहुत पहले हुआ सूरज हलाल।

रात से ज़्यादा बड़ा है सुबहे फ़रदा का सवाल।

फ़ैसले की बात है तो राय मेरी पूछ ले आदमी हूँ, यार सिक्क़ों की तरह तो मत उछाल।

इस चमक में आग भी है जल न जाए तू कहीं खुश बहुत है तू अगर तो आँख से आँसू निकाल।

रोशनी का जुर्म है मुजरिम नहीं है दीदवर खींच सकता है अगर तो रोशनी की खींच खाल।

आईना है तू शहर के लोग है ख़ुद आषना।

मुतमइन रह लोग कर देंगे तुम्हारी देखभाल।

रोशनी में जो खड़े हैं रोशनी उनसे नहीं रोशनी जिनसे पड़े हैं वे अंधेरे में निढाल।

सब मरेंगे सेब, सपने, चांद, पानी और तू कश्तियाँ अपनी जलाकर झील को अब मत उबाल।

रुक सकेंगे ये परिंदे सिर्फ दो हालात में आसमां को मूँद दे या पंख इनके काट डाल।