भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहानुभूति / अल-सादिक अल-रादी / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 10 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अल-सादिक अल-रादी |अनुवादक=विपिन च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब भी तुम्हारा नाम
देने लगता है कई कानों पर दस्तक
झिझक उठता हूँ मैं
तुम्हारे रहस्य को
बने रहने देना चाहता हूँ रहस्य
( इच्छाओं ने तुम्हारे चेहरे को परिपक्व कर दिया है,
तुम्हारी आँखें मृदुलता से चमक रही हैं,
पुकारने पर तुम्हारी देह कँपकँपाने लगती है)
तुम्हारा जिक्र
मेरा अन्तःकरण चीर देता है
और इसी कारण
दुपहर की इस गर्मी में आ गया हूं मैं
तुम्हारे क़रीब
सुनाने सुबह का अफ़साना
तुम…
तुम…
मेरा एकमात्र मज़हब !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विपिन चौधरी