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स्याहियों में घुली फिज़ा मानो / विनय कुमार

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स्याहियों में घुली फिज़ा मानो।
चांद उल्टा हुआ तवा मानो।

साँस लेता नहीं कहीं कोई
हो गई है हवा हवा मानो।

सब दुखों का इलाज है अंतिम
राम के वाण को दवा मानो।

सच बताने की क़सम खाता है
क़त्ल उस शख़्स का हुआ मानो।

पहले ख़ुद को अगस्त्य में बदलो
तब किसी झील को कुआँ मानो।

क्या पता क्या उगल गया सूरज
आँख में भर गया धुआँ मानो।

एक इल्ज़ाम सर गया मेरे बोझ दिल से उतर गया मानो।