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सावधान / गुजराती बाई

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सावधान हे युवक-उमंगों, सावधानता रखना खूब।
युवासमय के महा मनोहर विषयों में जाना मत डूब॥
सर्वकाज करने के पहले पूछो अपने दिल से आप।
‘‘इसका करना इस दुनिया में, पुण्य मानते हैं या पाप’’॥
जो उत्तर दिल देय तुम्हारा उसे समझ लो अच्छी भाँति।
काज करो अनुसार उसी के नष्ट करो दुःखों की पाँति॥
कभी भूल ऐसी मत करना अद्धी के लालच में आज।
देना पड़ै कल्ह ही तुमको रत्नमालसम निज कुल-लाज॥
युवासमय के गर्म रक्त में मत बोओ तुम ऐसा बीज।
वृद्ध समय के शीत रक्त मंे, फूलै चिन्ता फलै कुखीज॥
पश्चाताप कुरस नित टपकै बदनामी-गुठली दृढ़ होय।
उँगली उठै बाट में चलते, मुँ भर बात न बूझै कोय॥
यौवन ऋतु बसन्त में प्यारे कुसुम सपूत देखि मत भूल।
दबा-दबाकर युक्ति-सहित रख निज उमंग के सुन्दर फूल॥
सावधान! इनको विनष्टकर फिर पीछे पछतावेगा।
वृद्ध वयस सम्मान सुगन्धित फिर कैसे महाकावेगा॥
परमेश्वर के न्याय-तुला की डंडी जग में जाहिर है।
उसको ऊँच नीच कछु करना मानव बल से बाहर है॥
अंहकार सर्वदा जगत् में मुँह की खाता आया है।
नय नम्रता मान पाते हैं, सबने यही बताया है।
है प्रत्येक भव्यता के हित इस जग में निकृष्टता एक।
विषय रूप मिष्ठान्न मध्य हैं विषमय आमय-कीट अनेक॥
इन्द्रिय-विषय शिखर दूरहिं ते महा मनोरम लगते हैं।
निकट जाय जाँचे समझोगे, रूपहरामी ठगते हैं॥
है प्रत्येक ऊँच में नौचा, प्रति मिठास में कडु़आ स्वाद।
प्रति कुकर्म में शर्म भरी है मर्म खोय मत हो बरबाद॥
प्रकृति-नियम यह सदा सत्य है कैसे इसे मिटाओगे।