भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्राप / विजयशंकर चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 21 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अग्निदेव ने कहा दक्ष से ---
प्रजापति, खूब दिया दान-दहेज़
घर ढूँढ़ा अच्छा
प्रतिभा-सम्पन्न वर


लेकिन बेटी को विदा करके
यदि नहीं देखा समय-समय पर पीछे मुड़कर
तो सौ टुकड़े हो जाएगा तुम्हारा सिर
भस्म हो जाएगी बेटी
कालान्तर में दक्ष का सिर तो रहा सही-सलामत
मगर बार-बार भस्म होती रही सती।