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श्राप / विजयशंकर चतुर्वेदी
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अग्निदेव ने कहा दक्ष से ---
प्रजापति, खूब दिया दान-दहेज़
घर ढूँढ़ा अच्छा
प्रतिभा-सम्पन्न वर
लेकिन बेटी को विदा करके
यदि नहीं देखा समय-समय पर पीछे मुड़कर
तो सौ टुकड़े हो जाएगा तुम्हारा सिर
भस्म हो जाएगी बेटी
कालान्तर में दक्ष का सिर तो रहा सही-सलामत
मगर बार-बार भस्म होती रही सती।