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मेहरबानी बाँटिए, नामेहरबानी बाँटिए / विनय कुमार
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मेहरबानी बाँटिए, नामेहरबानी बाँटिए।
बेचने से जो बचे ज़िल्लेसुभानी बाँटिए।
रोज़ कालाहडियों में रतजगे हैं भूख से
लोरियां मीठी, डकारों की कहानी बाँटिए।
बस्तियाँ हैं प्यास की, सब फ़ासले हैं रेत के
आ गई हैं छलनियां सरकार पानी बाँटिए।
सूरदासों की सभा में बांटिए टंकित बयान
और बहरों की सभाओं में ज़ुबानी बाँटिए।
झोंकिए ज़म्हूरियत की भाड़ आएंगे चने
चार घानी खाइए तो एक घानी बाँटिए।
आपके ये हमवतन भी किस क़दर मासूम हैं
कह रहे हैं मुल्क में राजधानी बाँटिए।
तार-तोहफ़े ख़्वाब थे अब चिठ्ठियाँ भी बंद हैं
इत्र के अंदाज़ में यादें पुरानी बाँटिए।