भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हार / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:11, 29 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’ |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुसुमों के कमनीय कलित कुंजो के कुसुम चयनकर नाथ।
मृदुल माल एक रुचिर बनायी रच-रचकर निज कम्पित हाथ॥
पूजा का कुछ साज नहीं है देव! आह! दुखिया के पास।
किन्तु हार, में संचित है मम सरल स्नेह की सरस सुबास॥
इस अनुराग-माल में गुम्फित है मेरा जीवन सुकुमार।
आओ! देव! पिन्हादे ‘नलिनी’ पा जावे जीवन का सार॥