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कुसुमाकर! / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’

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आशा की सूनी कुटीर में यह नैराश्यों का अधिवास।
उर-उपवन में बिखर रहा है पीड़ाओं का मृदु मधुमास॥
आह! खोगई व्यथित हृदय की चिर संचित मृदु आकुल आस।
आज रोरही रजकण में मिल आह! विकल प्राणों की प्यास॥

जीवन की अवशेष घड़ी में देव! दया कर आजाना।
अपने करुण के अंचल से करुणाकण बिखेर जाना॥
प्रिय! मेरी आशा-समाधि पर दो आँसू ढुलका जाना।
तृषित मूक प्राणों की पागल प्रबला प्यास मिटा जाना॥