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अज्ञात! / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’
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हृदय-अंचल में रक्खा मूँद, उमड़ते भावों का तूफान।
नयन की मृदु कनीनिका मध्य, छिपा आँसू का करुण उफान॥
साधना का अवगुंठन डाल, मौन के आसव का कर पान।
मिटाने को जीवन-अभिशाप, निभृत में किया शांति आह्वान॥
छेड़ना यहाँ न विस्मृत गीत, खोजना मत खोया अनुराग।
भंग मत करना मौन समाधि, कहीं लुट जाय न मधुर विराग॥
हृदय-प्याले से छलक न जाय, कहीं वह आसव-चिर-उन्माद।
कहीं पाकर सुस्मृति-आभास, जग उठे आह न सुप्त विषाद॥