कि अपना खुदा होना - .............अरूणा राय
गुलामों की जुबान नही होती सपने नही होते इश्क तो दूर जीने की बात नही होती मैं कैसे भूल जाऊं अपनी गुलामी कि अपना खुदा होना कभी भूलता नहीं तू...
मेरे सपनों का राजकुमार .............अरूणा राय
मेरे सपनों का राजकुमार बनना चाहता है वह पर उसके पास ना तो भावनाओं को अपनी टापों से रौंदने वाले घोड़े हैं ना ही वह तलवार है जिसे वह मेरे जिगर के पार उतार सके। ________________________________________ अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन -
{ कुमार मुकुल के लिए } - अरूणा राय
............................................................... अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन मैंने कहां पढी है वह कविता अभी तो तूने मेरी आंखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं कंधे लिखे हैं उठान लिए और मेरी सुरीली आवाज लिखी है
पर मेरी रूह फना करते उस शोर की बाबत कहां लिखा कुछ तूने जो मेरे सरकारी जिरह-बख्तर के बावजूद मुझे अंधेरे बंद कमरे में एक झूठी तस्सलीबख्श नींद में गर्क रखती है
अभी तो बस सुरमयी आंखें लिखीं हैं तूने उनमें थक्कों में जमते दिन ब दिन जिबह किए जाते मेरे खाबों का रक्त कहां लिखा है तूने
अभी तो बस तारीफ की है मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्मय पर वह क्षय कहां लिखा है जो मेरी निगाहों से उठती स्वर लहरियों को बारहा जज्ब किए जा रहा है
अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी नाजुकी लिखी है लबों की वह बांकपन कहां लिखा है तूने जिसने हजारों को पीछे छोड़ा है और फिर भी जिसके नाखून और सींग नहीं उगे हैं
अभी तो बस रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ और क्रोसिए की कढाई का जिक्र किया है तूने मेरे जीवन की लड़ाई और चढाई का जिक्र तो बाकी है अभी...
अभी तूने वह कविता लिखनी है जानेमन ...
प्यार में ... - अरूणा राय ...............................................................
प्यार में हम क्यों लड़ते हैं इतना बच्चों सा जबकि बचपना छोड आए कितना पीछे
अक्सर मैं छेड़ती हूं उसे जाए बतिआए अपनी लालपरी से और झल्लाता सा चीखता है वह - कपार ... फिर पूछती हूं मैं यह कपार क्या हुआ जानेमन तो हंसता है वह - कुछ नहीं ... मेरा सर ...
फिर बोलता है वह - और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और तुम्हारा वह दंतचिपोर ... ओह शिट ... यह चिपोर क्या हुआ ... नहीं मेरा मतलब हंसमुख था जो मुंह लटकाए पड़ा रहता है दर पर तेरे...
हा हा हा छोडि़ए बेचारे को कितना सीधा है वह आपकी तरह तंग तो नहीं करता बात-बेबात
और आपकी वह सहेली कैसी है पूछता है वह ... कौन अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा फैलाए रहती है व्हाट झखुरा ... झल्लाता है वह अरे वही बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूं लोचन ... वाला मतलब जुल्फों वाली आपकी सुनयना
अरे अच्छी तो है वह कितनी उसी दिन बेले की कलियां सजा रखी थीं
तो तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते
अरे वहीं से तो चला आ रहा हूं ... हा हा हा देखो मेरी आंखों में उसकी खुश्बू दिख नहीं रही...
झपटती हूं मैं और वार बचाता वह संभाल लेता है मुझे और मेरा सिर सूंघता कहता है - ऐसी ही तो खुश्बू थी उसके बालों की भी ... हा हा हा ...
कैसा आततायी है रे तू ... - अरूणा राय ...............................................................
मेरी सारी दिशाओं को अपने मृदु हास्य में बांध कहां गुम हो गया है खुद
कि कैसा आततायी है रे तू
तुझसे अच्छा तो सितारा है वह दूर है पर हिलाए जा रहा अपनी रोशन हथेली
जो नहीं है रे तू तो क्यों यह तेरी अनुपस्थिति ऐसी बेसंभाल है
तू तो कहता है कि मेरा प्यार है तू तो फिर यह दर्द कैसा दुश्वार है ...
कहीं यही तो नहीं है प्यार ... - अरूणा राय ...............................................................
सोचती हूं अगली बार उसे देख लूंगी ठीक से निरख-परख लूंगी जान लूंगी पूरी तरह समझ लूंगी
पर सामने आने पर निकल जाता है वक्त देखते-देखते कि देख ही नहीं पाती उसे पूरा एक निगाह एक स्वर या आध इंच मुस्कान में ही उलझकर रह जाती हूं और वह भी किसी बहाने लेता है हाथ हाथों में और पूछता है क्या इसी अंगूठे में चोट है... कहां है चोट ... ओह ... यहां अरे तुम्हारी मस्तिष्क रेखा तो सीधी चली जाती है आर-पार इसीलिए करती हो इतनी मनमानी खा जाती हो सिर और फिर ... वक्त आ जाता है चलने का कि गर्मजोशी से हाथ मिलाता है वह भूलकर मेरा चोटिल अंगूठा ओह... उसकी आंखों की चमक में दब जाता है मेरा दर्द और सोचती रह जाती हूं मैं कि यह जो दबा रह जाता है दर्द जो बचा रह जाता है जानना देखना उसे जीभर कर कहीं यही तो नहीं है प्यार ...
एक खालीपन है ... - अरूणा राय ...............................................................
एक खालीपन है जो परेशान करता है रात दिन
यह उसके होने की खुशी से रौशन खालीपन नहीं है जिसमें मैं हवा सी हल्की हो भागती-दौड़ती उसे भरती रह सकती हूं
यह उसके ना होने से पैदा एक ठोस और अंधेरा खालीपन है जो अपने भीतर धंसने नहीं देता मुझे
इस खालीपन को अपनी हंसी से गुंजा नहीं सकती मैं
इसमें तो मेरी रूलाई की भी रसाई नहीं
यह ना हंसने देता है ना रोने बस एक अनंत उदासी में गर्क होने को छोड़ जाता है तन्हा ...
कैसी आग है यह ... - अरूणा राय ...............................................................
ओह क्या है यह मेरे पहलू में यह कैसी आग जलती रहती है हर बखत जिसमें मेरा हृदय तपता रहता है
वह अग्नि है तो राख क्यों नहीं कर जाती मेरा हृदय
ना स्वप्न है ना जागरण है कैसा व्यक्तित्वांतरण है यह कि अपनी ही शक्ल अब बेगानी लग रही है कि अब तो बस वही चेहरा है अग्निशिखा में दिपता सा निर्धूम
जाने यह कैसी आग है यह कौन जगता जा रहा है मेरे अंतर में कैसी पुकार है यह मेरे अंतर को व्यथित करती ...
बीच में थी एक लट ...- अरूणा राय ...............................................................
एक दुधिया चेहरा एक तांबई
बीच में थी
एक लट काली सी
दोलती ...
आखिर हम आदमी थे ...- अरूणा राय ...............................................................
इक्कीसवीं सदी के आरंभ में भी प्यार था वैसा ही आदिम शबरी के जमाने सा तन्मयता वैसी ही थी मद्धिम था स्पर्श गुनगुना...
आखिर हम आदमी थे ... इक्कीसवीं सदी में भी
प्रतीक्षा में ... - अरूणा राय ...............................................................
आंसुओं से मेरे कब-तक धोते रहोगे चेहरा मेरी आंखों की चमक में नहाओ कभी
देखो प्रतीक्षा में वे कैसी भास्वर हो उठी हैं ...
आज तूने ... - अरूणा राय ...............................................................
आज तूने स्वप्न की शुरूआत कर दी रात ही थी रात तूने प्रात कर दी निपट खाली था यह अपना हृदय भी तूने तो बस चंपई सौगात कर दी आज... स्वप्न था या के सचमुच था वो तू ही बेले गेंदा चमेली चंपा सोनजूही छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी आज... तस्वीर में बैठा है तू तो अब भी सम्मुख हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा लीले डालती हैं इन निगाहेां की भंवर तो किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी आज...
एक अकेले से ... - अरूणा राय ...............................................................
चलते - चलते हाथ बढ़ाए हमने तो वो उलझे और छूट गए और छोड़ गए उलझन
अब एक अकेले से वह सुलझे कैसे ...
अकारण प्यार से ... - अरूणा राय ...............................................................
स्वप्न में मन के सादे कागज पर एक रात किसी ने ईशारों से लिख दिया अ.... और अकारण शुरू हो गया वह और एक अनमनापन बना रहने लगा फिर उस अनमनेपन को दूर करने को एक दिन आई खुशी और आजू-बाजू कई कारण खडें कर दिए कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए और वह लगा डग भरने , चलने और और अखीर में उड़ने अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी जिधर का ईशारा करता अ... और पाता कि यह दुनिया तो इसी अकारण प्यार से चल रही है और उसे पहली बार प्यारी लगी यह कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत जबकि तमाम उम्र वह इसी के बारे में कलम घिसता रहा था
यह सोच-सोच कर उसे खुद पर हंसी आई और अपनी बोली में उसने खुद को ही कहा - भक... बुद्धू... भक... अ ने दुहराया उसे और बिहंसता जाकर झूल गया उसके कंधों से अब दोनों ने मिलकर कहा - भक... और ठठाकर हंस पड़े भक... दूर दो सितारे चमक उठे...
आंखों के तरल जल का आईना ... - अरूणा राय ...............................................................
मेरा यह आईना शीशे का नहीं जल का है
यह टूट कर बिखरता नहीं
बहुत संवेदनशील है यह तुम्हारे कांपते ही तुम्हारी छवि को हजार टुकडों में बिखेर देगा यह
इसलिए इसके मुकाबिल होओ तो थोडा संभलकर
और हां इसमें अपना अक्श देखने के लिए थोडा झुकना पडता है यह आंखों के तरल जल का आईना है
उसकी त्रासदियां... - अरूणा राय ...............................................................
किसी एक पल शुरू होते हो तुम
निगाह या ध्वनि या एक शब्द से
अगले पल
अंत हो जाता है उसका
पर उसकी त्रासदियां
अनंत होती जाती हैं...
सचमुच की यातना ... - अरूणा राय ...............................................................
झूठी राहत ढूंढ रहा था मैं पर तूने दे डाली सचमुच की यातना ...
खुशियों से जो ढंक रहे थे मुझे क्या कम था
क्या फितूर था
कि जिससे शीतलता पाई चाह रही थी कि वही जलाए मुझे ...
चुप हो तुम ... - अरूणा राय ...............................................................
चुप हो तुम तो हवाएं चुप हैं
खामोशी की चील काटती है चक्कर दाएं... बाएं
लगाती हूं आवाज...
पर फर्क नहीं पड़ता
बदहवासी
पैठती जाती है भीतर...
कि अभाव से उसके ...- अरूणा राय ...............................................................
माउस को ... पर ले जाकर क्लिक करती हूं .....
याहू मैसेंजर का बक्सा कौंधता हुआ आ जाता है उसी तरह पर जो नहीं आते वे हैं शब्द हाय या हाई या कहां हैं आप ... के जवाब में कौंधते चले आते थे जो
मतलब जो रोज आती थी परदे पर वह छाया नहीं थी मात्र जैसा कि सोचती थी मैं कभी-कभी ठीक है कि एक परदा रहता था बीच में पर परदे के पीछे की दुनिया उतनी अबूझ नहीं थी कभी जैसी कि लग रही है अब इस समय जब कि वह नहीं है वहां परदे के उस पार
एक शून्य को खटखटाता चला जा रहा पर शून्य है कि पानी की लकीर तरह माउस क्लिक करने की क्रिया को लील जा रहा है
ओह क्या करूं मैं कि एक खालीपन ने भर दिया है मुझे इस तरह कि खाली नहीं कर पा रही खुद को विचार से कि भाव से कि अभाव से उसके...
प्रेमी ... - अरूणा राय ...............................................................
प्रेमी गौरैये का वो जोड़ा है जो समाज के रौशनदान में उस समय घोसला बनाना चाहते हैं जब हवा सबसे तेज बहती हो और समाज को प्रेम पर उतना एतराज नहीं होता जितना कि घर में ही एक और घर तलाशने की उनकी जिद पर शुरू में खिड़की और दरवाजों से उनका आना-जाना उन्हें भी भाता है भला लगता है चांय-चू करते घर भर में घमाचौकड़ी करना पर जब उनके पत्थर हो चुके फर्श पर पुआल की नर्म सूखी डांट और पत्तियां गिरती हैं एतराज उनके कानों में फुसफुसाता है फिर वे इंतजार करते हैं तेज हवा बारिश और लू का और देखते हैं कि कब तक ये चूजे लड़ते हैं मौसम से बावजूद इसके जब बन ही जाता है घोंसला तब वे जुटाते हैं सारा साजो-सामान चौंकी लगाते हैं पहले फिर उस पर स्टूल पहुंचने को रोशनदान तक और साफ करते हैं कचरा प्रेम का और फैसला लेते हैं कि घरों में रौशनदान नहीं होने चाहिए नहीं दिखने चाहिए ताखे छज्जे खिड़कियां में जाली होनी चाहिए
पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी कहां थमता है प्यार
जब वे सबसे ज्यादा निश्चिंत और बेपरवाह होते हैं उसी समय जाने कहां से आ टपकता है एक चूजा
भविष्यपात की सारी तरकीबें रखी रह जाती हैं और कृष्ण बाहर आ जाता है...
मेरा काबुलीवाला .......- अरूणा राय ...............................................................
वो जो इक छोटी सी बच्ची है जिसकी निगाहें मेरी आत्मा के हरे चिकने पात पर गिरती रहती हैं अनवरत बूंदों की तरह वो ही मेरी छोटी सी बच्ची अपनी सितारों सी टिमकती आंखें मेरी आंखों में डाल मचलती सी बोलती है कितने अच्छे हो आप
मैं और अच्छा ? (मेरी तोते सी लाल नाक पकड़ हिलाता.....) अच्छे की बच्ची कुछ बड़ी हो जा तो तू उससे भी अच्छी हो जावेगी और ...और सच्ची और ...और नेक ला दे अपना हाथ क्या आज नही करेगी हैंडशेक...
(ये मेरे काबुली वाले के लिए,कि जिसका वादा है एक रोज़ आने का.....)
और तीन दिल चाक हैं ... - अरूणा राय ...............................................................
चन्दन की दो डालियां जब टकरायीं तो पैदा हुई अग्नि और लगी फैलने चहुंओर
खुशबू तो एक ही थी दोंनों की सो उसने चाहा कि रोके इस आग को पर खुद को खोकर रही उधर आग थी कि खाक होकर रही
अब न चंदन है ना खुशबू है चतुर्दिक उड़ती हुई राख है और तीन दिल चाक हैं...
अगले मौसमों के लिए अलविदा कहते हुए ....- अरूणा राय ...............................................................
सार्वजनिक तौर पर कम ही मिलते हम भाषा के एक छोर पर बहुत कम बोलते हुए अक्सर बगलें झांकते भाषा के तंतुओं से एक दूसरे को टटोलते दूरी का व्यवहार दिखाते
क्षण भर को छूते नोंक भर एक दूसरे को और पा जाते संपूर्ण
हमारे उसके बीच समय एक समुद्र सा होता असंभव दूरियों के
स्वप्निल क्षणों में जिसे उड़ते बादलों से पार कर जाते हम धीरे धीरे
अगले मौसमों के लिए अलविदा कहते हुए ...
मेरा ह्दय ...- अरूणा राय ...............................................................
उसकी निगाहें उसके चेहरे पर खिची स्मित-मुस्कान उसकी चंचलता मुझे स्थिर कर रही थी
मेरी आंखें झुकी जा रही थीं और मेरा ह्दय खोल रहा था खुद को...
मेरी चुप्पी बज रही थी उसके भीतर जिसके शोर में ढूंढ रहा था वह धड़कनों को अपनी।
कि अपनी हजार सूरतें निहार सकूं. - अरूणा राय ...............................................................
जिस समय मैं उसे अपना आईना बता रही थी दरक रहा था वह उसी वक्त टुकडों में बिखर जाने को बेताब सा हालांकि उसके जर्रे जर्रे में मेरी ही रंगो आब झलक रही थी पर मैं क्या कर सकती थी कि वह आईना था तो उसे बिखरना ही था अब भी मैं उसकी आंखें हूं और हर जर्रे से वे आंखें मुझे ही निहार रही हैं पर क्या कर सकती हूं मैं कि मैंने ही बिखेर दिया है उसे कि अपनी हजार सूरतें निहार सकूं ...
तू मेरा आइना है और तू ... - अरूणा राय ...............................................................
पूछती हूं मैं......... ... क्या होता है प्यार तो कहता है वो के जो तू कहती है कि तू आइना है मेरा और जो मैं कहता हूं के आंखें है तू मेरी यही ... यही है प्यार अच्छा??????? तो यह जो तेरा मेरा है यही प्यार है??????? मतलब ... सारा कुछ गड्ड मड्ड कर देना कि ना कुछ तेरा ... ना मेरा रहे कुछ? हां ... हां ... चीखता है वह तो फिर तेरी कविता मेरी हुई हां चल हुई और ... मेरे आंसू भी तेरे हुए अरे ... ओह तू तो सचमुच रोने लगी ओह ... हां हुई पर इसका मतलब ये नहीं के तू टेसुए बहाती रहे ताउम्र तो क्या प्यार में केवल खुशी वाले पल चलेंगे -फिर गम वाले ये पल कौन लेगा??????? ... पूछती हूं मैं वह सोच में पड़ जाता है गम वाले... हां हां गमवाले हुए मेरे... पर कुछ अपने लिए भी रखोगी के बस यूं ही उड़ते रहने का ख्याल है वाह... पर क्यों... अरे गम वाले तो मेरे पास भी इफरात हैं...
यादें और भूलना ..........- अरूणा राय ...............................................................
कुछ बूंदें टपका.... हल्की हो गयी........ कि कुछ हुआ ही ना हो...... फिर कुछ सुना.......... फिर याद किया किसी को............ पर नहीं आए आंसू फिर गुजर गयी रात भी गहरी नींद थी स्वप्नहीन सुबह जगी तरोताजा किताबें पढीं............. नहीं अब यादें शेष नहीं वाह - जादू हो गया आज मुक्त हो गयी वह तो...........
फिर बैठ गयी कुर्सी पर तभी दूर आकाश में यूकेलिप्टस हिले कि जाने कहां से फिर छाने लगी धूंध और छाती चली गयी...
अरूणाकाश- अरूणा राय ...............................................................
जीवन के तमाम रंग खिलते हैं अरूणाकाश में तितलियां उड़ती हैं पक्षी अपनी चहचहाहटों से गूंजाते हैं अरूणाकाश तड़कर गिरने से पहले बिजलियां कौंधती हैं अरूणाकाश में वहां संचित रहते हैं सारे राग विराग दुखी आदमी ताकता है उपर अरूणाकाश ठहाके उसे ही गुंजाते हैं आंसुओं के साथ मिट्टी में गिरता जब भारी हो जाता है दुख तब उपर उठती आह समेट लेता है अरूणाकाश।
हां जी हम प्यार में हैं- अरूणा राय ...............................................................
.......
हां जी इन दिनों हम प्यार में हें अब यह मत पूछिएगा कि किसके हवाओं के चांदनी के या रेत के बस प्यार है और हम लिखते चल रहे हैं कोई नाम जहां तहां और उसके आजू बाजू लिख दे रहे हैं पवित्र मासूम निर्दोष और यह सोचते हैं कि ये उसे जाहिर कर देंगे या ढक लेंगे
आजकल कभी भी खटखटा देते हैं एक दूसरे का ह्दय और हड़बड़ाए से कह बैठते हैं लगता है बेवक्त आ गए और ऐसा कहते हुए समाते चले जाते हैं एक दूसरे के भीतर
फिर अचानक खुद को समेटते चल देते हैं झटके से कि फिर बात करते हैं कि एक पूछता है अरे आपका कुछ छूटा जा रहा है यहां कोर्इ दिल विल सा तो नहीं
नहीं वह आपका ही है मेरे तो किसी काम का नहीं
ऐसा कहता मन मसोसता झटके से छुपा लेता है उसे मन
कभी यूं ही बज उठती है मोबाइल पता चलता है गलती से दब गया था नंबर कि घंटी बजती है दिमाग की वह लगता है चीखने संभलो दिल दिल दिल कि हत्था मार बंद करता उसका हंगामा .......
अब कोई उसे कहां ढूंढे -- अरूणा राय ...............................................................
मेरी पतंग कटी और खोती चली गई अरूणाकाश में........... अब कोई उसे कहां ढूंढे।.................