भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन के मीठी सुवास रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
बन के मीठी सुवास रहती है।
वो मेरे आसपास रहती है।
उसके होंठों में झील है मीठी,
मेरे होंठों में प्यास रहती है।
आँख में प्यार की दवा डाली,
अब ज़बाँ पर मिठास रहती है।
मेरी यादों के मैकदे में वो,
खो के होश-ओ-हवास रहती है।
मेरे दिल में न झाँकिये साहिब,
वो यहाँ बेलिबास रहती है।