भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावित्री / पॉल वेरलेन / मदन पाल सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 13 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पॉल वेरलेन |अनुवादक=मदन पाल सिंह |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी दत्तक बहन एलिज़ा के प्रेम में असफल होने की सूचना पाकर


सावित्री ने ली सौगन्ध अपने स्वामी के प्राण रक्षा के हित
कि वह खड़ी रहेगी तीन दिन-रात लगातार
न झपकेगी पलक, न खिसकेंगे पद और बदन-एक अविचल मूठ की तरह !
जैसा व्यास ने कहा था।

सूर्य तेरी तेज़ तपन और मध्यरात्रि में चोटियों पर छाई चन्द्र की शान्तिदायक चान्दनी
हत कर सके नहीं उस व्रत और निर्णय का,
उस पतिव्रता के शरीर और ध्यान को कोई भी शिथिल कर सका नहीं।

चाहे विस्मृति हमें घेरे - वह नीरस घाती
या कुटिल ईर्ष्या, चाह काबू करना चाहे
पर हम रहें शान्त चित, सावित्री की तरह
आत्मा में उच्च लक्ष्य लिए -- अविचल।

मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : मदन पाल सिंह