भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अकेले से / अरुणा राय

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 30 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय }} चलते - चलते<br> हाथ बढ़ाए हमने<br> तो वो उलझे <br> औ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलते - चलते
हाथ बढ़ाए हमने
तो वो उलझे
और छूट गए
और छोड़ गए उलझन

अब
एक अकेले से
वह सुलझे कैसे ...