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मछलियाँ मनाती हैं अवकाश / सुरेन्द्र स्निग्ध

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गाँव से आया हूँ बाबू, गाँव से
इसी गोपालपुर से सटे एक गाँव से

अभी कुछ ही देर में
अपनी-अपनी नौकाओं के साथ
मछुआरे आ जाएँगे समुद्र से बाहर
लाएँगे ढेर सारी
छोटी-बड़ी मछलियाँ
अपनी-अपनी टोकरियों में भरकर
फिर हम लौट जाएँगे अपने गाँव
टोकरियों में भरकर
समुद्र की अनन्त लहरों के फूल
पाँवों में लेकर ढेर सारा नमक
आप लोग अपने साथ
             उतार लीजिए हमारा भी फोटो
हम लिखा रहे हैं अता-पता
              डाक से भेज दीजिएगा फोटो
आप लोगों की उन्मुक्त हँसी का
समुद्र की उन्मुक्तता से करते रहेंगे मिलान

सवेरे के नौ बज गए हैं
सूरज चढ़ आया है
                     लहरों पर
                      एक बाँस ऊपर
तुम लोग क्यों नहीं
                      लौट रहे हो गाँव
क्यों चक्कर काट रहे हो एक तस्वीर
                       उतरवाने को
क्यों आ रहे हो हमारे इतने पास
क्यों तुम लोग अचानक
                       हो गए एकदम उदास?
देखिए बाबू, देखिए
सारे मछुआरे लौट आए हैं समुद्र से बाहर
                       अपनी-अपनी नौकाओं के साथ
                        ख़ाली-ख़ाली हाथ
आज एक भी मछली नहीं आई लहरों में
एक भी नहीं।

हाँ, बाबू, हाँ —
कभी-कभी मछलियाँ आती ही नहीं
                        लहरों के साथ
लगता है अपने बाल-बच्चों सहित
कभी-कभी मछलियाँ
मनाती हैं अवकाश !
समझ गए होंगे
हम सब आज क्यों हैं इतना उदास !