भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखिर हम आदमी थे / अरुणा राय
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 30 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय }} इक्कीसवीं सदी के <br> आरंभ में भी<br> प्यार था<br> ...)
इक्कीसवीं सदी के
आरंभ में भी
प्यार था
वैसा ही
आदिम
शबरी के जमाने सा
तन्मयता
वैसी ही थी
मद्धिम
था स्पर्श
गुनगुना...
आखिर
हम आदमी थे
... इक्कीसवीं सदी में भी