भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी त्रासदियां / अरुणा राय
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 30 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय }} किसी एक पल<br> शुरू होते हो तुम<br><br> निगाह<br> या ...)
किसी एक पल
शुरू होते हो तुम
निगाह
या ध्वनि
या एक शब्द से
अगले पल
अंत हो जाता है उसका
पर
उसकी त्रासदियां
अनंत होती जाती हैं...