भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात के दो अढ़ाई बजे / कपिल भारद्वाज

Kavita Kosh से
Sandeeap Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 19 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कपिल भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात के दो-अढ़ाई बजे,
महताब के शबाब के समय,
अचानक याद आ जाती है मुझे,
एक शराब और एक किताब,
दोनों ही का खुमार, बरसों से है तारी ।

किताब पढ़ना जैसे शराब पीना घूंट-घूंट,
हर हर्फ़ से आती है गुड़ और गेहूं की गंध,
सामने फैली चांदनी से ही,
घायल तितलियों का जोड़ा अक्सर डूब जाता है,
उसी शराब की खुश्बू में,
जिसे पढ़ने की कोशिश में,
इच्छाओं के मासूम जुगनू विलीन हो गए,
घनघोर अँधेरे में ।