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नीम तले (नवगीत) / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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नीम तले
सब ताश खेलते
रोज़ सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम

फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार

ढाल
पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम

शहर गया है
गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना
नए वक़्त से
मिला महीनों बाद

फिर से महक उठे आँगन में
रोटी, बोटी, जाम

छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई
सूरज ने आकर छुए गुलाबी गाल

बोली
छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम