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संशय / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:52, 22 जनवरी 2019 का अवतरण
हमेशा संशय रहता है
ठीक ही हूँ न
कितने लोगों को आज सूर्याेदय से अगले साल इसी दिन सूर्योदय तक
अपनी पहचान बदलनी है? फूल कुतरने की मशीनों की रफ़्तार बढ़ती
जा रही है। हम मिथक जीते हैं और तय करते हैं कि आज कौन बलि
चढ़ रहा है। एक दिन राजकुमार आएगा और राक्षस को मार डालेगा।
राक्षसों ने लाटरियाँ बन्द कर दी हैं।
किसी ने दोलन चक्रों पर काम किया है