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ढूँढा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला / हस्तीमल 'हस्ती'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:21, 25 जनवरी 2019 का अवतरण
ढ़ूँढ़ा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला
ग़म से तो गहरा कोई समंदर नहीं मिला
ये तजुर्बा हुआ है मुहब्बत की राह में
खोकर मिला जो हमको वो पाकर नहीं मिला
दहलीज अपनी छोड़ दी जिसने भी एक बार
दीवारो दर ही उसको मिले घर नहीं मिला
दूरी वही है अब भी करीबी के बावजूद
मिलना उसे जहाँ था वहाँ पर नहीं मिला
सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला
घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला