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सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो / शहरयार

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सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो

कि आगे के तमाम मोड़ वह नहीं हैं

चींटियों ने हाथियों की सूँड में पनाह ली

थके-थके से लग रहे हो,

धुंध के ग़िलाफ़ में, उधर वह चांद रेगे-आसमान से

तुम्हें सदाएँ दे रहा है, सुन रहे हो

तुम्हारी याददाश्त का कोई वरक़ नहीं बचा

तो क्या हुआ

गुज़िश्ता रोज़ो-शब से आज मुख़्तलिफ़ है

आने वाला कल के इन्तज़ार का

सजाओ ख़्वाब आँख में

जलाओ फिर से आफ़ताब आँख में

सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो।