भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो इन्सान था पहले कभी / शहरयार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:34, 31 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार }} शहर सारा ख़ौ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर सारा ख़ौफ़ में डूबा हुआ है सुबह से

रतजगों के वास्ते मशहूर एक दीवाना शख़्स

अनसुनी, अनदेखी ख़बरें लाना जिसका काम है

उसका कहना है कि कल की रात कोई दो बजे

तेज़ यख़बस्ता हवा के शोर में

इक अजब दिलदोज़, सहमी-सी सदा थी हर तरफ़

यह किसी बुत की थी जो इन्सान था पहले कभी।


श्ब्दार्थ :

यख़बस्ता= ठंडी