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जब मौत आए / मेरी ओलिवर / अपूर्वानन्द

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जब मौत आए
पतझड़ के भूखे भालू की तरह;

जब मौत आए
और अपने बटुए से
सारे चमकीले सिक़्क़े निकाल ले
मुझे ख़रीदने के लिए, और चट
अपना बटुआ बन्द कर दे;

जब मौत आए
चेचक की तरह

जब मौत आए
हिमखण्ड की तरह
कंधे की हड्डियों (पंखुड़ों) के बीच,

मैं उस दरवाज़े से गुजरना चाहती हूँ भरी हुई
कौतूहल से, सोचती हुई
आखिर कैसी होगी वह कुटिया
अन्धेरे की ?

और इसीलिए मैं हर चीज़ को देखती हूँ
भाईचारे और बहनापे की तरह,

और मेरे लिए वक़्त
एक ख़याल से अधिक कुछ नहीं,

और मैं अनन्त को
एक और सम्भावना मानती हूँ,

और मैं हर ज़िन्दगी को
एक फूल की तरह देखती हूँ, उतनी ही आम
जितनी मैदान की वह डेज़ी, और उतनी ही
एकल

और हर नाम
होठों पर एक आरामदेह गीत
सहलाता हुआ, जैसा हर संगीत करता है, खामोशी की तरफ,

और हर शरीर
बहादुर शेर, और
इस ज़मीन के लिए क़ीमती ।

जब यह खत्म हो जाएगा, मैं चाहती हूँ
कहना कि तमाम ज़िन्दगी
मैं दुलहन रही अचरज की ।

मैं दूलहा थी
दुनिया को अपनी बाँहों में लेती हुई ।

जब यह ख़त्म हो जाएगा, मैं नहीं चाहती सोचना
कि क्या मैंने अपनी ज़िन्दगी को कुछ ख़ास बनाया, और हक़ीक़ी ।

मैं नहीं चाहती ख़ुद को देखना आहें भरते
और भयभीत ।

मैं नहीं चाहती
ख़त्म होना ऐसे शख़्स की तरह जो
इस दुनिया में सिर्फ आया ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अपूर्वानन्द