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मैं ज्वारों से प्यार करुँगा / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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मैं ज्वारों से प्यार करुँगा, चाँद! तुम्हें शरमाना होगा।
पतझड़ का श्रृंगार करूँगा, कोकिल को मुस्काना होगा।।
सुन्दरता से प्यार विश्व, करता आया है और करेगा।
सुन्दरता पर मिटनेवाला, सुन्दरता के लिये मरेगा।।
फूलों में है हींं आकर्षण, शूलों से प्यार करूँगा मैं।
मधुमास मनालो री दुनिया, अपना श्रृंगार करूँगा मैं।।
शूलों का श्रृंगार करूँगा, कोकिल तुमको गाना होगा।
मैं ज्वारों से प्यार करुँगा, चाँद! तुम्हें शरमाना होगा।।
पतझड़-मर्मर को भूलेगा, क्यों मधुमास मनाने वाला।
गा सकता उजड़ी बहार को, गीत बसन्ती गानेवाला।
लू-लपटों में जलनेवाला, ही मधुमास मना सकता है।
शूलों पर चलनेवाला ही, पथ पर पुष्प बिछा सकता है।।
ज्वारों! मुझको समझ कलाधर, तुम्हें चूमने आना होगा।
मैं ज्वारों से प्यार करुँगा, चाँद! तुम्हें शरमाना होगा।।
सचमुच इन शूलों ने ही तो, फूलों का निर्माण किया है।
उठकर अल्हड़ ज्वारों ने ही, शशि को गौरव-दान किया है।
आकर्षण पर झुकनेवालोंं! जलने की भी हिम्मत है क्या?
भोली-भाली दुनिया बोलो! दे दूँ तेरी कीमत है क्या?
गा कोकिल! तुमको पतझड़ में, वह पंचम स्वर गाना होगा।
मैं ज्वारों से प्यार करुँगा, चाँद! तुम्हें शरमाना होगा।।