भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्तर्दाह / पृष्ठ 12 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 13 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उनका नाचना, थिरकना,
रूठना, विहँसना, झुकना
उन मतवाले अलियों का
देखा न कभी भी रुकना ।।५६।।
आतप तापित मस्तक पर
प्रस्वेद - बिन्दु थे कैसे
अगणित हिम-बिन्दु बिछे हों
सित कमल पत्र पर जैसे ।।५७।।
अकलुष, अनिन्द्य रक्तानन
रक्तोत्पल सा निखरा था,
उसका सौन्दर्य अनोखा
इस जीवन में बिखरा था ।।५८।।
नव किसलय सदृश कपोलों
पर ब्रीड़ा का पहरा था,
शुचि सरल रसेन्दु चमकता
अमृत फल-सा चेहरा था ।।५९।।
वे गाल गुलाबी रंग के
वह भव्य ललाट धवल था,
वह रूप सरस मनमोहक
मदिरा से भरा नवल था ।।६०।।